शिवसेना शुरू से स्टंट की राजनीति करती रही है। यह राजनीति कुछ समय के लिए पॉप्युलर भले हो जाए, कोई समस्या नहीं सुलझाती। चार दशकों की राजनीति में ठाकरे ने महाराष्ट्र की कोई समस्या नहीं सुलझाई। पार्टी राज्य में भी सत्ता में आई और केंद्र में भी, मगर मराठी अस्मिता के सवाल पर भी महाराष्ट्र में या मुंबई में हालात बेहतर होने का दावा खुद शिवसेना भी नहीं कर सकती।
फिर भी, ठाकरे उसी शैली में राजनीति करने को मजबूर हैं, क्योंकि अब राज ठाकरे के रूप में उनका नया राइवल उभर आया है। पूरी जिंदगी मराठी राजनीति करने के बाद उन्हें प्रदेश की मराठी जनता के सामने एक बार फिर खुद को साबित करना है। नहीं कर सके तो खारिज कर दिए जाएंगे। खारिज करने की यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह बात पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ठाकरे देख चुके हैं। इसीलिए राजनीतिक वानप्रस्थ से वापस आकर उन्होंने उद्धव के हाथों में सौंपी जा चुकी कमान एक बार फिर अपने हाथ में ली है।
एक बार फिर शिवसेना सब कुछ भूल मराठी मुद्दे पर टूट पड़ी है। बार-बार ठोकर लग रही है, लेकिन ठाकरे इतने बदहवास हैं कि संभल नहीं पा रहे। सचिन तेंडुलकर ने उन्हें संभालने की कोशिश की, यह कह कर कि मुंबई सबकी है, पर ठाकरे ने उसी से पंगा ले लिया। मुंह की खानी पड़ी, पर रवैया वही रहा। मुकेश अंबानी ने भी खरी-खरी सुना दी, लेकिन ठाकरे बेअसर। आखिरी वार संघ ने किया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत खुद महाराष्ट्र के हैं, पर उन्होंने भी साफ कह दिया कि मुंबई सभी भारतीयों की है। बीजेपी ने भी संघ का इशारा समझ कर अपना रवैया साफ कर दिया कि वह इस मुद्दे पर सेना का साथ नहीं दे सकती। मगर, ठाकरे पर कोई असर फिर भी नहीं दिख रहा है।
यह अड़ियस रुख तारीफ के काबिल होता, अगर इसके पीछे ठाकरे की प्रतिबद्धता होती। प्रतिबद्धता नहीं है, यह बात आज से नहीं, काफी पहले से जाहिर होती रही है। ठाकरे का विरोध सहूलियतों पर आधारित रहा है। वे गुलाम अली का विरोध करते हैं तो माइकल जैक्सन को अपने घर बुला लेते हैं।
पुराने मामलों को भुला दें तो आज भी वह शाहरुख की फिल्म को इसलिए रिलीज नहीं होने दे रहे क्योंकि शाहरुख ने पाकिस्तानी क्रिकेटरों की तारीफ करने वाला बयान दिया। आमिर से भी उनकी यही शिकायत है। मगर, वह खुद पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद को अपने घर 'मातो श्री' बंगले में बुला चुके हैं। इस पर सफाई देते हुए शिवसेना के नेता कह रहे हैं कि 'मियांदाद पाकिस्तानी खिलाड़ी के रूप में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर ठाकरे से मिलने आए थे।' इसका क्या मतलब? आइपीएल में पाकिस्तान से आए खिलाड़ी भी व्यक्तिगत हैसियत से ही आए थे, वे पाकिस्तानी टीम का हिस्सा नहीं थे।
दूसरी बात, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यही मियांदाद कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के समधी हैं। ऐसे आदमी से ठाकरे को क्या काम हो गया? वह कौन सी मजबूरी थी जिसके चलते ठाकरे इस आदमी की अपने घर पर मेजबानी करने को राजी हुए? यह कहने का मतलब नहीं है कि मियांदाद खुद मिलना चाहते थे। कल को हो सकता है दाऊद भी उनसे मिलना चाहे। तो क्या वह दाऊद का भी अपने बंगले पर स्वागत करेंगे?
Thursday, 4 February 2010
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2 comments:
Are Bhaiyo koi bachao is blog ko barbad hone se..........
Ye sab kya chal raha hai is blog me.....
Are bhaiya ek baar blog ka naam to padh lo...
COLLEGE KHABAR....
Aap log kya kar rahe ho is blog me.
Ab hamara college khabar desh khabar banega
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