Thursday, 4 February 2010

पुरुषों पर अत्याचार ????

Thursday, 4 February 2010
महिला अधिकारों की जब बात उठती है तो महिलाएं क्या मांगती हैं? जाहिर है बराबरी का अधिकार। लेकिन अगर बराबरी की मांग करते-करते कोई खुद शोषणकारी की तरह बर्ताव करने लगे तो.... कम से कम कुछ मामलों में तो यही हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अभी भी कई जगह खासकर गांवों में महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए जितना भी किया जाए वह कम है लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है जो अपने हक के लिए मिले कानून का दुरूपयोग कर रही हैं। और कानून भी इसमें मूकदर्शक बने रहने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा है।

मेरा एक मित्र है जिसने कुछ दिनों पत्रकारिता की और अब लॉ करने के बाद एक सीनियर क्रिमिनल लॉयर के साथ ट्रेनिंग ले रहा है। कुछ ही दिन पहले वह मिला और इतना व्यथित था कि पूछिए मत। वजह पूछने पर बताया कि यार गलत काम मैं कर नहीं सकता और न करूं तो वकालत करने का सपना छोड़ना पड़ेगा। और मेरे पैरंट्स मुझे समझने की बजाय मुझे प्रैक्टिकल बनने की सलाह दे रहे हैं। हुआ यूं कि कुछ दिन पहले उसके सीनियर के पास एक महिला आई। पढ़ी लिखी और मॉडर्न। उसने अपने 2 साल पुराने पति और उसके पैरंट्स के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत केस दर्ज कराया था। वह वकील से कहने लगी कि मैं अपने पति और उसके पूरे परिवार को जेल में देखना चाहती हूं चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। आप चाहें तो सबूत क्रिएट करने के लिए मैं अपने शरीर पर सिगरेट से दागने के निशान बना सकती हूं। इतना बताया ही था कि मेरा वह दोस्त बुरी तरह बरस पड़ा। उसने बताया कि एक हफ्ते से वह सीनियर लॉयर के पास नहीं गया है क्योंकि जब उसने उनसे कहा कि सर ये तो गलत है तो उन्होंने उसे ही लेक्चर दे डाला।

एक वाकया और याद आ रहा है जब मैं कॉलेज में स्टूडेंट यूनियन में थी। एक 22 साल के लड़के को रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया। कुछ सीनियर पुलिस अधिकारियों ने बताया कि दरअसल मामला कुछ और ही है। वह लड़का एक कॉल गर्ल के पास गया और बाद में पैसों को लेकर कुछ बहस हुई और 40 रुपये को लेकर उसने लड़के पर रेप का केस कर दिया। मेडिकल टेस्ट में भी उसकी पुष्टि हो गई। पुलिस वाले हकीकत जानते हुए भी कुछ नहीं कर सके और उस लड़के को सजा हो गई।

मेरा यह कहने का कतई मतलब नहीं है कि कानून गलत है लेकिन कानून का गलत इस्तेमाल जरूर हो रहा है। आप यह भी कह सकते हैं कि महिलाओं को अतिरिक्त अधिकार देने का ही नहीं बल्कि मर्डर जैसे सारे कानूनों का गलत इस्तेमाल हो रहा है तो... हां मैं भी इससे सहमत हूं। लेकिन कुछ तो ऐसा करना ही होगा जिससे बेगुनाह को सजा ना मिले। और महिला अधिकारों के नाम पर कुछ बेचारे पुरुष ना पिसें।

अभी हाल ही में उत्तराखण्ड में एक अजीब वाकया घटा। जब दुल्हन सुहागरात से ठीक पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गई। परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। लेकिन जेल गया सिर्फ प्रेमी। जबकि दोनों अपनी मर्जी से भागे थे। लड़की ने अपने प्रेमी से कहा था कि अगर वो सुहागरात से पहले उसे भगा नहीं ले गया तो वो जहर खा लेगी। पुलिस के सामने खुद लड़की ने ये बयान दिया लेकिन कानून का शिकंजा कसा सिर्फ लड़के पर। अगर लड़की कोर्ट में बयान देने तक अपने कहे पर कायम रहती है, तो शायद युवक बच जाए। लेकिन अगर किसी दबाव में या किसी और वजह से वह मुकर गई तो? बेचारा प्रेमी...


अदालतें खुद कई बार यह मान चुकी हैं कि कई बार महिलाएं बदला लेने के मकसद से झूठे केस दर्ज करवा देती हैं और महिला के अधिकारों की रक्षा के लिए बने कानून बेगुनाह पुरुष के उत्पीड़न के हथियार बन जाते हैं। इतिहास में पढ़ा था कि एक दौर में मातृ सत्ता हुआ करती थी। तब महिलाओं की तूती बोलती थी। फिर वक्त बदला और पुरूषों ने सत्ता पर कब्जा जमा डाला और महिलाओं के शोषण की ऐसी काली किताब लिखी कि लाख धोने पर भी शायद ही धुले। आज जब महिलाओं के पास एक बार फिर कानूनी ताकत आ रही है तो क्या पुरूषों के साथ भी वही सबकुछ नहीं होने लगा है। भले ही अभी इसे शुरुआत कहा जाए...। लेनिन ने कहा था कि सत्ता इंसान को पतित करती है या यूं कहें पावर जिसके पास होती है वह शोषणकारी होता है और उसका इंसानी मूल्यों के प्रति कोई सरोकार नहीं रहता। लेकिन क्या ऐसे कभी समानता आ सकती है? या फिर ये चक्र ऐसे ही घूमता रहेगा। कभी हम मरेंगें... कभी तुम मरोगे।

2 comments:

Anonymous

Are yaar ye kahani likhne ke liye kisne kaha tha aapse........
Aap kon ho bhai kaha se aaye ho.????
Kyo is blog ko nasht karna chahte ho..... Akhir kyo???

Shalini

baat jisne bhi likhi hai sahi likhi hai. by d way who r u mr. anonymous ???

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